Gun Sandhi Ki Paribhasha
गुण संधि (Gun Sandhi) वह संधि होती है जिसमें ‘अ’ या ‘आ’ के बाद आने वाले स्वर ‘इ’, ‘ई’, ‘उ’, ‘ऊ’, या ‘ऋ’ के साथ मिलकर क्रमशः ‘ए’, ‘ओ’, या ‘अर’ हो जाते हैं।
🔹 सरल शब्दों में:
जब किसी शब्द के अंत में ‘अ’ या ‘आ’ आता है और अगले शब्द की शुरुआत ‘इ’, ‘ई’, ‘उ’, ‘ऊ’, या ‘ऋ’ से होती है — तो दोनों के मिलने पर एक नया स्वर बन जाता है — यही गुण संधि (Gun Sandhi) कहलाती है।
उदाहरण
| प्रथम शब्द | द्वितीय शब्द | परिणामी शब्द | संधि का प्रकार |
|---|---|---|---|
| देव | ईश्वर | देवेश्वर | गुण संधि |
| सुर | उपासना | सुरोपासना | गुण संधि |
| महा | ऋषि | महार्षि | गुण संधि |
| नर | ईश्वर | नरेश्वर | गुण संधि |
| राम | उपासना | रामोपासना | गुण संधि |
गुण संधि की याद रखने की ट्रिक
“अ या आ से हो पहला अंत,
और स्वर से हो अगला प्रांत —
ए, ओ या अर जब बने,
गुण संधि (Gun Sandhi) समझो तुम तगड़े!”
गुण संधि के प्रकार (Gun Sandhi Ke Prakar)
गुण संधि में स्वर परिवर्तन तीन मुख्य संयोजनों पर आधारित होता है:
| क्रम | संयोजन | परिणामी स्वर | उदाहरण |
|---|---|---|---|
| 1 | अ / आ + इ / ई | ए | देव + ईश्वर = देवेश्वर |
| 2 | अ / आ + उ / ऊ | ओ | सुर + उपासना = सुरोपासना |
| 3 | अ / आ + ऋ | अर | महा + ऋषि = महार्षि |
👉 यह परिवर्तन स्वर के गुण रूप (ए, ओ, अर) बनने के कारण “Gun Sandhi” कहलाता है।

गुण संधि पहचानने के नियम (Gun Sandhi Pehchanne Ke Niyam)
नियम 1️⃣ : जब पहला शब्द ‘अ’ या ‘आ’ पर समाप्त हो
अगर किसी शब्द का अंत अ या आ से हो, तो आगे गुण संधि बनने की संभावना रहती है।
🔹 जैसे: महा + ईश्वर = महेश्वर
➡ यहाँ “महा” का अंत ‘आ’ से हुआ है।
नियम 2️⃣ : जब दूसरा शब्द स्वर से शुरू होता है (इ, ई, उ, ऊ, ऋ)
गुण संधि में दूसरा शब्द हमेशा स्वर से शुरू होता है — और वो स्वर इ, ई, उ, ऊ, ऋ में से एक होता है।
🔹 जैसे: देव + ईश्वर → देवेश्वर
➡ दूसरा शब्द “ईश्वर” स्वर “ई” से शुरू हो रहा है।
नियम 3️⃣ : ‘अ’ या ‘आ’ + ‘इ’ या ‘ई’ = ‘ए’
अगर पहले शब्द का अंत ‘अ’ या ‘आ’ और अगले शब्द की शुरुआत ‘इ’ या ‘ई’ से हो,
तो दोनों मिलकर ‘ए’ बनाते हैं।
🔹 उदाहरण:
-
शुभ + इच्छुक = शुभेच्छुक
-
देव + ईश्वर = देवेश्वर
नियम 4️⃣ : ‘अ’ या ‘आ’ + ‘उ’ या ‘ऊ’ = ‘ओ’
अगर पहले शब्द का अंत ‘अ’ या ‘आ’ और अगले शब्द की शुरुआत ‘उ’ या ‘ऊ’ से हो,
तो दोनों मिलकर ‘ओ’ बनाते हैं।
🔹 उदाहरण:
-
महा + उत्सव = महोत्सव
-
गुरु + उपदेश = गुरोपदेश
नियम 5️⃣ : ‘अ’ या ‘आ’ + ‘ऋ’ = ‘अर’
अगर पहले शब्द का अंत ‘अ’ या ‘आ’ और अगले शब्द की शुरुआत ‘ऋ’ से हो,
तो दोनों मिलकर ‘अर’ बनाते हैं।
🔹 उदाहरण:
-
राज + ऋषि = राजर्षि
-
महा + ऋषि = महार्षि
नियम 6️⃣ : कोई व्यंजन संधि नहीं बनती
गुण संधि केवल स्वर से स्वर के मिलने पर बनती है।
अगर दूसरा शब्द व्यंजन (क, ग, च आदि) से शुरू होता है, तो गुण संधि नहीं होगी।
🔹 जैसे: राम + कृपा = रामकृपा (यहाँ Gun Sandhi नहीं है)।
नियम 7️⃣ : पहले शब्द का स्वर बदलता नहीं, दूसरा स्वर परिवर्तित होता है
गुण संधि में परिवर्तन दूसरे शब्द के प्रारंभिक स्वर में होता है,
पहले शब्द के स्वर को बनाए रखा जाता है।
🔹 जैसे: महा + ईश्वर → महेश्वर (यहाँ “महा” वैसा ही रहा, “ई” बदल गया)।
नियम 8️⃣ : अर्थ बना रहना चाहिए
गुण संधि के बाद शब्द का अर्थ बदले नहीं, बल्कि संबंध अधिक स्पष्ट हो जाए।
🔹 जैसे: महा + उत्सव = महोत्सव (बड़ा उत्सव)।
नियम 9️⃣ : स्वर परिवर्तन के बाद संयुक्त शब्द नया अर्थ देता है
गुण संधि में नया शब्द बनने के बाद उसका अर्थ नया या विस्तृत हो जाता है।
🔹 जैसे: देव + ईश्वर = देवेश्वर (देवों के ईश्वर)।
नियम 🔟 : Gun Sandhi को पहचानने का सरल ट्रिक
अगर किसी संयुक्त शब्द में बीच में ए, ओ, या अर आता है,
तो लगभग निश्चित है कि वह Gun Sandhi से बना है।
🔹 जैसे:
-
महोत्सव → ओ → Gun Sandhi
-
परमेश्वर → ए → Gun Sandhi
-
राजर्षि → अर → Gun Sandhi
एक झटपट सारणी
| पहला शब्द का अंत | दूसरा शब्द का प्रारंभ | परिणामी स्वर | उदाहरण | अर्थ |
|---|---|---|---|---|
| अ / आ | इ / ई | ए | शुभ + इच्छुक = शुभेच्छुक | शुभ की इच्छा रखने वाला |
| अ / आ | उ / ऊ | ओ | महा + उत्सव = महोत्सव | बड़ा उत्सव |
| अ / आ | ऋ | अर | राज + ऋषि = राजर्षि | राजा जो ऋषि भी हो |
गुण संधि के 25 उदाहरण वाक्यों सहित (Gun Sandhi Ke 25 udaharan)
1) देव + ईश्वर = देवेश्वर
वाक्य: भगवान शिव को देवेश्वर कहा जाता है।
संधि-विच्छेद: देव + ईश्वर → देव-ईश्वर
नियम लागू: अ/आ + इ/ई → ए (गुण संधि)
ध्वनिगत परिवर्तन: ‘ई’ का स्वर ‘ए’ में बदल गया और दो शब्द जुड़कर एक मधुर रूप बना।
शब्द-प्रकार: संज्ञा
व्याख्या: पहले शब्द का अंत ‘अ/आ’ और दूसरे की शुरुआत ‘ई’ से है, इसलिए बीच का ‘इ/ई’ बदलकर ‘ए’ बनता है — देव + ईश्वर → देवेश्वर। अर्थ: देवताओं का ईश्वर या उन्नत ईश्वर।
2) सुर + उपासना = सुरोपासना
वाक्य: ऋषियों ने सुरोपासना का विधान बताया है।
संधि-विच्छेद: सुर + उपासना → सुर-उपासना
नियम लागू: अ/आ + उ/ऊ → ओ (गुण संधि)
ध्वनिगत परिवर्तन: ‘उ’ का स्वर ‘ओ’ बन गया।
शब्द-प्रकार: संज्ञा
व्याख्या: ‘सुर’ का अंत ‘अ’ और ‘उपासना’ की शुरुआत ‘उ’ से है, इसलिए संयुक्त शब्द में ‘ओ’ आता है — सुरोपासना (देवताओं की आराधना)।
3) महा + ऋषि = महार्षि
वाक्य: वाल्मीकि को महार्षि कहा जाता है।
संधि-विच्छेद: महा + ऋषि → महा-ऋषि
नियम लागू: अ/आ + ऋ → अर (गुण संधि)
ध्वनिगत परिवर्तन: ‘ऋ’ के साथ मिलकर ‘अर’ ध्वनि बनती है।
शब्द-प्रकार: संज्ञा/विशेषण (संदर्भानुसार)
व्याख्या: ‘महा’ के अंत का ‘आ’ और ‘ऋषि’ की शुरुआत ‘ऋ’ से मिलकर ‘अर’ बनता है — महार्षि; अर्थ: महा (= महान) + ऋषि = महान ऋषि।
4) शुभ + इच्छुक = शुभेच्छुक
वाक्य: मेरे शुभेच्छुक मित्र हमेशा मदद करते हैं।
संधि-विच्छेद: शुभ + इच्छुक → शुभ-इच्छुक
नियम लागू: अ/आ + इ/ई → ए (गुण संधि)
ध्वनिगत परिवर्तन: ‘इ’ → ‘ए’
शब्द-प्रकार: विशेषण/संज्ञा (संदर्भानुसार)
व्याख्या: ‘शुभ’ का अंत ‘अ’ है, ‘इच्छुक’ की शुरुआत ‘इ’ है; मिलकर ‘ए’ बनता है — शुभेच्छुक (जिसकी शुभकामनाएँ हों)।
5) महा + उपासना = महोपासना
वाक्य: उन्हों ने गहन महोपासना की।
संधि-विच्छेद: महा + उपासना → महा-उपासना
नियम लागू: अ/आ + उ/ऊ → ओ ( Gun Sandhi)
ध्वनिगत परिवर्तन: ‘उ’ → ‘ओ’
शब्द-प्रकार: संज्ञा
व्याख्या: महा (आ) + उपासना (उ) मिलने पर ‘ओ’ बनकर महोपासना हुआ — बड़ा/गहन आराधनात्मक कार्य।
6) नर + ईश्वर = नरेश्वर
वाक्य: प्राचीन ग्रंथों में राजा को नरेश्वर कहा गया।
संधि-विच्छेद: नर + ईश्वर → नर-ईश्वर
नियम लागू: अ/आ + इ/ई → ए (गुण संधि)
ध्वनिगत परिवर्तन: ‘ई’ → ‘ए’
शब्द-प्रकार: संज्ञा
व्याख्या: मानव (नर) और ईश्वर की संज्ञा मेलकर नरेश्वर बना — अ+ई के कारण ‘ए’ बनना।
7) सुर + ऋषि = सुरर्षि
वाक्य: कुछ पुराणों में सुरर्षि का उल्लेख मिलता है।
संधि-विच्छेद: सुर + ऋषि → सुर-ऋषि
नियम लागू: अ/आ + ऋ → अर (गुण संधि)
ध्वनिगत परिवर्तन: ‘ऋ’ → ‘अर’
शब्द-प्रकार: संज्ञा
व्याख्या: ‘सुर’ के संग ‘ऋषि’ मिलकर ‘अर’ ध्वनि देते हैं — सुरर्षि (देवों के ऋषि)।
8) राम + उपासना = रामोपासना
वाक्य: भक्ति में रामोपासना का बड़ा महत्व है।
संधि-विच्छेद: राम + उपासना → राम-उपासना
नियम लागू: अ/आ + उ/ऊ → ओ (गुण संधि)
ध्वनिगत परिवर्तन: ‘उ’ → ‘ओ’
शब्द-प्रकार: संज्ञा
व्याख्या: राम (अ/आ अंत) और उपासना (उ) के मिलने से रामोपासना — राम की आराधना।
9) महा + ऊर्जावान = महोर्जावान
वाक्य: युद्ध में वह महोर्जावान योद्धा था।
संधि-विच्छेद: महा + ऊर्जावान → महा-ऊर्जावान
नियम लागू: अ/आ + ऊ → ओ (गुण संधि)
ध्वनिगत परिवर्तन: ‘ऊ’ → ‘ओ’
शब्द-प्रकार: विशेषण
व्याख्या: लोकभाषा में ऊ के साथ भी ‘ओ’ बनकर मिलन होता — महोर्जावान = अत्यन्त ऊर्जावान।
10) सु + ऋषि = सुरषि
वाक्य: उस नगरी में सुरषि की शिक्षा दी जाती थी।
संधि-विच्छेद: सु + ऋषि → सु-ऋषि
नियम लागू: अ/आ (यहाँ छोटा अ प्रयोज्य) + ऋ → अर (गुण संधि)
ध्वनिगत परिवर्तन: ‘ऋ’ → ‘अर’
शब्द-प्रकार: संज्ञा
व्याख्या: ‘सु’ + ‘ऋषि’ मिलने पर सुरषि बनता है — सुंदर/श्रेष्ठ ऋषि का बोध कराता है।
11) शुभ + उपहार = शुभोपहार
वाक्य: त्योहार पर प्रियजनों को शुभोपहार दिए जाते हैं।
संधि-विच्छेद: शुभ + उपहार → शुभ-उपहार
नियम लागू: अ/आ + उ/ऊ → ओ (गुण संधि)
ध्वनिगत परिवर्तन: ‘उ’ → ‘ओ’
शब्द-प्रकार: संज्ञा
व्याख्या: शुभ (अ) और उपहार (उ) जुड़कर शुभोपहार — शुभ अवसर हेतु दिया गया उपहार।
12) राज + ऋषि = राजर्षि
वाक्य: प्राचीन कथाओं में कुछ राजर्षि मिलते हैं।
संधि-विच्छेद: राज + ऋषि → राज-ऋषि
नियम लागू: अ/आ + ऋ → अर (गुण संधि)
ध्वनिगत परिवर्तन: ‘ऋ’ → ‘अर’
शब्द-प्रकार: संज्ञा
व्याख्या: राज + ऋषि मिलकर राजर्षि — राजा जो ऋषि भी हों; यहाँ ऋ से अर बनना स्पष्ट।
13) महा + उदार = महोदार
वाक्य: समाज में वे बहुत महोदार माने जाते थे।
संधि-विच्छेद: महा + उदार → महा-उदार
नियम लागू: अ/आ + उ/ऊ → ओ (गुण संधि)
ध्वनिगत परिवर्तन: ‘उ’ → ‘ओ’
शब्द-प्रकार: विशेषण
व्याख्या: महा (आ) + उदार (उ) → महोदार = अत्यंत उदार।
14) विद्या + इच्छु = विद्वेच्छु
वाक्य: वह विद्वेच्छु छात्र नई विधाएँ सीखता है।
संधि-विच्छेद: विद्या + इच्छु → विद्या-इच्छु
नियम लागू: अ/आ + इ/ई → ए (गुण संधि)
ध्वनिगत परिवर्तन: ‘इ’ → ‘ए’ (यहाँ ‘इच्छु’ का रूपांकन)
शब्द-प्रकार: संज्ञा/विशेषण
व्याख्या: विद्या की इच्छा = विद्वेच्छु; ध्यान दें—योग्य शब्द रूप में ‘इच्छु’ से ‘ए’ बनता है।
15) देव + उपासक = देवोपासक
वाक्य: मंदिर में कई देवोपासक मौजूद थे।
संधि-विच्छेद: देव + उपासक → देव-उपासक
नियम लागू: अ/आ + उ/ऊ → ओ (गुण संधि)
ध्वनिगत परिवर्तन: ‘उ’ → ‘ओ’
शब्द-प्रकार: संज्ञा
व्याख्या: देव की उपासना करने वाला — देवोपासक; संधि से शब्द सरल व मधुर बनता है।
16) महा + ईश्वर = महेश्वर
वाक्य: महेश्वर शब्द भगवान शिव के संदर्भ में भी आता है।
संधि-विच्छेद: महा + ईश्वर → महा-ईश्वर
नियम लागू: अ/आ + इ/ई → ए (गुण संधि)
ध्वनिगत परिवर्तन: ‘ई’ → ‘ए’
शब्द-प्रकार: संज्ञा
व्याख्या: महा (महान) + ईश्वर = महेश्वर; ई → ए बदल कर मिला।
17) सु + उपदेश = सुपदेश
वाक्य: साहित्य में सुपदेश का विशेष स्थान है।
संधि-विच्छेद: सु + उपदेश → सु-उपदेश
नियम लागू: अ/आ + उ/ऊ → ओ (लुप्त रूप में) → सुपदेश (स्थानीय/प्रचलित रूप)
ध्वनिगत परिवर्तन: ‘उ’ → ‘ओ’ या कभी-कभी ध्वनि लुप्त होकर सहज रूप बनता है।
शब्द-प्रकार: संज्ञा
व्याख्या: सु (अ) + उपदेश (उ) का मिलन सुपदेश/सुपदेश जैसा प्रचलित रूप देता है; यहां pronunciation-based बदलाव देखा जाता है।
18) त्रि + ईश्वर = त्रेश्वर
वाक्य: कुछ ग्रंथों में त्रेश्वर का उल्लेख मिलता है।
संधि-विच्छेद: त्रि + ईश्वर → त्रि-ईश्वर
नियम लागू: अ/आ (त्रि के अंत में ‘इ’ भी है—यहाँ प्रयुक्त प्रारूप में त्रि का समायोजन) + इ/ई → ए (गुण संधि के समान व्यवहार)
ध्वनिगत परिवर्तन: ‘इ/ई’ → ‘ए’ (संयुक्त होते ही)
शब्द-प्रकार: संज्ञा
व्याख्या: ‘त्रि’ (तीन) और ‘ईश्वर’ (ई) का मेल कभी-कभी त्रेश्वर रूप देता है — यहाँ भी असर ए के बनने का है; ध्यान रहे यह प्रचलित प्रयोगों में भिन्न रूपों में मिलता है।
19) महा + उत्सव = महोत्सव
वाक्य: शहर में बड़ा महोत्सव मनाया गया।
संधि-विच्छेद: महा + उत्सव → महा-उत्सव
नियम लागू: अ/आ + उ/ऊ → ओ (गुण संधि)
ध्वनिगत परिवर्तन: ‘उ’ → ‘ओ’
शब्द-प्रकार: संज्ञा
व्याख्या: महा (आ) के साथ उत्सव (उ) मिलकर महोत्सव हुआ — बड़ा उत्सव।
20) नर + उत्साह = नरोत्साह
वाक्य: सेना में नरोत्साह की भावना दिखाई दी।
संधि-विच्छेद: नर + उत्साह → नर-उत्साह
नियम लागू: अ/आ + उ/ऊ → ओ (गुण संधि)
ध्वनिगत परिवर्तन: ‘उ’ → ‘ओ’
शब्द-प्रकार: संज्ञा
व्याख्या: नर (मानव) + उत्साह (उ) → नरोत्साह; अर्थ: मनुष्य का जोश/उत्साह।
21) महा + उपाय = महोपाय
वाक्य: समस्या के समाधान के लिए यह महोपाय है।
संधि-विच्छेद: महा + उपाय → महा-उपाय
नियम लागू: अ/आ + उ/ऊ → ओ (गुण संधि)
ध्वनिगत परिवर्तन: ‘उ’ → ‘ओ’
शब्द-प्रकार: संज्ञा
व्याख्या: महा + उपाय → महोपाय; बड़ा/उत्तम उपाय — संधि से अर्थ स्पष्ट व संक्षिप्त होता है।
22) सु + इच्छित = सुवेच्छित / सुवेच्छित (प्रचलित: सुवेच्छित)
वाक्य: यह निर्णय सुवेच्छित माना गया।
संधि-विच्छेद: सु + इच्छित → सु-इच्छित
नियम लागू: अ/आ + इ/ई → ए (गुण संधि)
ध्वनिगत परिवर्तन: ‘इ’ → ‘ए’
शब्द-प्रकार: विशेषण
व्याख्या: सु (अ) + इच्छित (इ) → सुवेच्छित/सुवेच्छित; जिसका भाव शुभ/अच्छा हो।
23) परम + ईश्वर = परमेश्वर
वाक्य: परमेश्वर से हम ईश्वर का सर्वोच्च स्वरूप समझते हैं।
संधि-विच्छेद: परम + ईश्वर → परम-ईश्वर
नियम लागू: अ/आ + इ/ई → ए (गुण संधि)
ध्वनिगत परिवर्तन: ‘ई’ → ‘ए’
शब्द-प्रकार: संज्ञा
व्याख्या: परम (सर्वोच्च) + ईश्वर = परमेश्वर; ई → ए बनकर स्पष्ट संयोजन करते हैं।
24) गुरु + उपदेश = गुरोपदेश
वाक्य: छात्रों ने गुरोपदेश ध्यानपूर्वक सुना।
संधि-विच्छेद: गुरु + उपदेश → गुरु-उपदेश
नियम लागू: अ/आ + उ/ऊ → ओ (गुण संधि)
ध्वनिगत परिवर्तन: ‘उ’ → ‘ओ’
शब्द-प्रकार: संज्ञा
व्याख्या: गुरु द्वारा दिया गया उपदेश — गुरु (अ) + उपदेश (उ) → गुरोपदेश।
25) महा + ऋतु = महारतु
वाक्य: बसंत को कुछ लोग महारतु भी कहते हैं।
संधि-विच्छेद: महा + ऋतु → महा-ऋतु
नियम लागू: अ/आ + ऋ → अर (गुण संधि)
ध्वनिगत परिवर्तन: ‘ऋ’ → ‘अर’
शब्द-प्रकार: संज्ञा
व्याख्या: महा (बड़ा/श्रेष्ठ) + ऋतु (मौसम) → महारतु; ऋ से अर बनकर संयुक्त शब्द बनता है।
गुण संधि और वृद्धि संधि में अंतर (gun sandhi or vriddhi sandhi me antar)
| बिंदु | गुण संधि | वृद्धि संधि |
|---|---|---|
| स्वर परिवर्तन | अ/आ + इ/ई/उ/ऊ/ऋ से ए/ओ/अर बनता है | अ/आ + इ/ई/उ/ऊ से ऐ/औ बनता है |
| उदाहरण | देव + ईश्वर = देवेश्वर | दे + इश्वर = देईश्वर |
| परिणाम | मध्यम स्वर परिवर्तन | अधिक स्वर परिवर्तन |
| पहचान | ए, ओ, अर बनता है | ऐ, औ बनता है |
लेखक की राय
संधि केवल नियम नहीं, बल्कि भाषा की आत्मा है।
गुण संधि (Gun Sandhi) को समझना मतलब शब्दों की मधुरता को पहचानना।”
सरल शब्दों में
जब ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘इ, ई, उ, ऊ, ऋ’ आते हैं और नया स्वर ‘ए’, ‘ओ’, या ‘अर’ बनता है —
तब वहाँ गुण संधि (Gun Sandhi) होती है।
निष्कर्ष
Gun Sandhi (गुण संधि) हिंदी व्याकरण का एक महत्वपूर्ण भाग है जो भाषा की ध्वनि-सौंदर्यता और शब्द-संरचना दोनों को संतुलित बनाता है।
यह न केवल परीक्षा के दृष्टिकोण से उपयोगी है, बल्कि दैनिक बोलचाल और लेखन में भी शब्दों को अधिक सुंदर, सरल और प्रभावशाली बनाता है।
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FAQs — गुण संधि से जुड़े प्रश्न
1.Gun Sandhi क्या होती है?
जब ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘इ’, ‘ई’, ‘उ’, ‘ऊ’, या ‘ऋ’ आने पर स्वर ‘ए’, ‘ओ’, या ‘अर’ में बदल जाता है, तो उसे गुण संधि कहते हैं।
2. गुण संधि के कितने प्रकार होते हैं?
Gun Sandhi तीन संयोजनों पर आधारित होती है —
(1) अ/आ + इ/ई = ए,
(2) अ/आ + उ/ऊ = ओ,
(3) अ/आ + ऋ = अर।
3. गुण संधि (Gun Sandhi) का सबसे आसान उदाहरण क्या है?
देव + ईश्वर = देवेश्वर — यह गुण संधि का सबसे सामान्य उदाहरण है।
4. गुण संधि और वृद्धि संधि में क्या अंतर है?
गुण संधि में ए, ओ, अर बनते हैं जबकि वृद्धि संधि में ऐ, औ बनते हैं।
5. गुण संधि कहाँ प्रयोग होती है?
यह हिंदी और संस्कृत दोनों भाषाओं में शब्दों के मेल (स्वर संधि) के दौरान प्रयोग होती है।
6. Gun Sandhi पहचानने का आसान तरीका क्या है?
अगर किसी संयुक्त शब्द में बीच में ए, ओ, या अर दिखे,
तो समझिए वहाँ गुण संधि हुई है।
जैसे — महोत्सव, परमेश्वर, राजर्षि।
7. गुण संधि किन शब्दों में नहीं होती?
जब दूसरा शब्द व्यंजन (जैसे क, ग, च, त) से शुरू होता है,
या दोनों शब्दों में स्वर परिवर्तन की स्थिति न बने,
तो Gun Sandhi नहीं होती।
⚠️ डिस्क्लेमर
यह लेख केवल शिक्षण और अध्ययन उद्देश्य से लिखा गया है।
सभी उदाहरण हिंदी व्याकरण की पारंपरिक परिभाषाओं और विश्वसनीय स्रोतों पर आधारित हैं।
