🌸परिचय
कभी आपने “नीत्यर्थ”, “गुरूपदेश” या “मुनिंद्र” जैसे शब्द देखे हैं?
पहली नज़र में ये शब्द थोड़े जटिल लगते हैं — पर अगर ध्यान से देखें तो इनमें छिपा है हिंदी का एक सुंदर रहस्य: Yan Sandhi (यण सन्धि)।
“बच्चो, ‘मुनि + इन्द्र = मुनिंद्र’। बताओ, यहाँ कौन सी सन्धि हुई?”
सारा वर्ग सोच में पड़ जाता है।
यहीं से शुरू होती है हमारी आज की सीख — यण सन्धि की अद्भुत दुनिया।
Yan Sandhi Ki Paribhasha
Yan Sandhi (यण सन्धि) वह सन्धि है जिसमें
जब किसी शब्द का अंत इ, ई, उ, ऊ या ऋ स्वर से होता है
और अगला शब्द स्वर से शुरू होता है,
तो पहले शब्द का स्वर बदलकर क्रमशः य, व या र हो जाता है।
👉 सरल शब्दों में:
जब दो शब्द मिलते समय “इ, उ या ऋ” स्वर अपने “यण रूप” में बदल जाते हैं, तब यण सन्धि होती है।
यण सन्धि रूपांतरण तालिका
| मूल स्वर | परिणामी यण रूप | उदाहरण | नया शब्द |
|---|---|---|---|
| इ, ई | य | नीति + अर्थ | नीत्यार्थ |
| उ, ऊ | व | गुरु + उपदेश | गुरूपदेश |
| ऋ | र | कृत + अर्थ | कृतार्थ |
यण सन्धि के प्रकार (Yan Sandhi Ke Prakar)
यण सन्धि मुख्यतः तीन प्रकार की होती है।
नीचे तालिका में हर प्रकार के साथ उदाहरण दिए गए हैं 👇
| प्रकार | नियम | उदाहरण | परिणाम |
|---|---|---|---|
| 1. इक यण सन्धि | इ/ई के बाद स्वर आए तो “य” हो जाता है | नीति + अर्थ | नीत्यार्थ |
| 2. उक यण सन्धि | उ/ऊ के बाद स्वर आए तो “व” हो जाता है | गुरु + ईश्वर | गुरूश्वर |
| 3. ऋक यण सन्धि | ऋ के बाद स्वर आए तो “र” हो जाता है | कृत + अर्थ | कृतार्थ |
यण सन्धि पहचानने के मुख्य नियम (Yan Sandhi Pehchanne Ke Niyam)
जब आप किसी संयुक्त शब्द को देखते हैं और यह समझना चाहते हैं कि उसमें यण सन्धि हुई है या नहीं,
तो नीचे दिए गए तीन सरल नियम (Niyam) को याद रखिए 👇
🔹 नियम 1: पहला शब्द इ, ई, उ, ऊ या ऋ पर समाप्त हो
👉 यदि पहले शब्द का अंतिम स्वर इन पाँच में से कोई है —
इ, ई, उ, ऊ, या ऋ —
तो यह यण सन्धि की पहली शर्त है।
उदाहरण:
-
नीति + अर्थ = नीत्यर्थ
-
गुरु + उपदेश = गुरूपदेश
-
कृत + अर्थ = कृतार्थ
यहाँ नीति, गुरु, और कृत शब्दों का अंत क्रमशः इ, उ, और ऋ
🔹 नियम 2: दूसरा शब्द स्वर से शुरू हो
👉 यदि दूसरे शब्द की शुरुआत स्वर (अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ) से होती है,
तो यण सन्धि होने की स्थिति बनती है।
उदाहरण:
-
मुनि + इन्द्र = मुनिंद्र
(दूसरा शब्द “इन्द्र” — स्वर “इ” से शुरू है) -
भू + इन्द्र = भुवेन्द्र
(दूसरा शब्द “इन्द्र” — स्वर “इ” से शुरू है)
🔸 अगर दूसरा शब्द व्यंजन से शुरू हो, तो यण सन्धि नहीं होगी।
उदाहरण: “गुरु + पुत्र” → गुरुपुत्र (यहाँ कोई यण सन्धि नहीं, क्योंकि “प” व्यंजन है।)
🔹 नियम 3: स्वर परिवर्तन का क्रम (इ → य, उ → व, ऋ → र)
👉 यही मुख्य पहचान है।
जब दो शब्द जुड़ते हैं, तो पहले शब्द के स्वर अपने “यण रूप” में बदल जाते हैं:
| मूल स्वर | यण रूप | उदाहरण |
|---|---|---|
| इ / ई | य | नीति + अर्थ = नीत्यार्थ |
| उ / ऊ | व | गुरु + उपदेश = गुरूपदेश |
| ऋ | र | कृत + अर्थ = कृतार्थ |
🔸 इस परिवर्तन को देखकर तुरंत पहचाना जा सकता है कि यह Yan Sandhi है।
सारांश
| क्रमांक | नियम | पहचान की विशेषता | उदाहरण |
|---|---|---|---|
| 1 | पहले शब्द का अंत इ, ई, उ, ऊ, या ऋ पर हो | स्वर अंत होना चाहिए | नीति + अर्थ = नीत्यार्थ |
| 2 | दूसरा शब्द स्वर से शुरू हो | दूसरा शब्द अ, इ, उ आदि स्वर से प्रारंभ | गुरु + उपदेश = गुरूपदेश |
| 3 | स्वर का यण रूप में परिवर्तन | इ→य, उ→व, ऋ→र | कृत + अर्थ = कृतार्थ |
यण सन्धि का सूत्र ( Yan Sandhi Ka Formula)
इ उ ऋ बनें — य व र
(इ और ई का रूप “य”, उ और ऊ का “व”, ऋ का “र” बनता है।)
यण सन्धि के 20 प्रमुख उदाहरण (Yan Sandhi Ke 20 udaharan)
1. नीति + अर्थ = नीत्यार्थ
-
पहला शब्द: नीति (अंत में ‘इ’)
-
दूसरा शब्द: अर्थ (शुरू ‘अ’ से)
-
परिवर्तन: ‘इ’ → ‘य’
-
कारण: जब ‘इ’ के बाद स्वर आता है, तो ‘इ’ का यण रूप ‘य’ बनता है।
✅ यहाँ यण सन्धि हुई है।
2. गुरु + उपदेश = गुरूपदेश
-
पहला शब्द: गुरु (अंत में ‘उ’)
-
दूसरा शब्द: उपदेश (शुरू ‘उ’ से)
-
परिवर्तन: ‘उ’ → ‘व’
-
नया शब्द: गुरु + उपदेश → गुरूपदेश
✅ यह उक यण सन्धि (उ → व) का उदाहरण है।
3. कृत + अर्थ = कृतार्थ
-
पहला शब्द: कृत (अंत में ‘ऋ’ ध्वनि)
-
दूसरा शब्द: अर्थ (शुरू ‘अ’ से)
-
परिवर्तन: ‘ऋ’ → ‘र’
✅ यह ऋक यण सन्धि (ऋ → र) का सुंदर उदाहरण है।
4. मुनि + इन्द्र = मुनिंद्र
-
पहला शब्द: मुनि (अंत में ‘इ’)
-
दूसरा शब्द: इन्द्र (शुरू ‘इ’ से)
-
परिवर्तन: ‘इ’ → ‘य’ (लेकिन उच्चारण सरलता हेतु ‘य’ की ध्वनि लुप्त होकर ‘मुनिंद्र’ बना)
✅ यण सन्धि का अप्रकट (implicit) रूप।
5. भू + इन्द्र = भुवेन्द्र
-
पहला शब्द: भू (अंत में ‘ऊ’)
-
दूसरा शब्द: इन्द्र (शुरू ‘इ’ से)
-
परिवर्तन: ‘ऊ’ → ‘व’
✅ यण सन्धि में स्वर ‘व’ बन गया।
6. सुमति + उपदेश = सुमत्युपदेश
-
पहला शब्द: सुमति (‘इ’ पर समाप्त)
-
दूसरा शब्द: उपदेश (‘उ’ से शुरू)
-
परिवर्तन: ‘इ’ → ‘य’
✅ नया शब्द: सुमत्युपदेश
7. ऋषि + अर्थ = ऋष्यार्थ
-
पहला शब्द: ऋषि (‘इ’ पर समाप्त)
-
दूसरा शब्द: अर्थ (‘अ’ से शुरू)
-
परिवर्तन: ‘इ’ → ‘य’
✅ नया शब्द: ऋष्यार्थ
8. सु + उपकार = सुवोपकार
-
पहला शब्द: सु (‘उ’ पर समाप्त)
-
दूसरा शब्द: उपकार (‘उ’ से शुरू)
-
परिवर्तन: ‘उ’ → ‘व’
✅ नया शब्द: सुवोपकार
9. अति + उपकार = अत्युपकार
-
पहला शब्द: अति (‘इ’ पर समाप्त)
-
दूसरा शब्द: उपकार (‘उ’ से शुरू)
-
परिवर्तन: ‘इ’ → ‘य’
✅ नया शब्द: अत्युपकार
10. कृत + उपकार = कृतोपकार
-
पहला शब्द: कृत (‘ऋ’ ध्वनि से समाप्त)
-
दूसरा शब्द: उपकार (‘उ’ से शुरू)
-
परिवर्तन: ‘ऋ’ → ‘र’
✅ नया शब्द: कृतोपकार
11. नीति + उपदेश = नीत्युपदेश
-
पहला शब्द: नीति (‘इ’ से समाप्त)
-
दूसरा शब्द: उपदेश (‘उ’ से शुरू)
-
परिवर्तन: ‘इ’ → ‘य’
✅ नया शब्द: नीत्युपदेश
12. गुरु + अर्थ = गुर्वर्थ
-
पहला शब्द: गुरु (‘उ’ से समाप्त)
-
दूसरा शब्द: अर्थ (‘अ’ से शुरू)
-
परिवर्तन: ‘उ’ → ‘व’
✅ नया शब्द: गुर्वर्थ
13. अति + इन्द्र = अत्यिन्द्र
-
पहला शब्द: अति (‘इ’ से समाप्त)
-
दूसरा शब्द: इन्द्र (‘इ’ से शुरू)
-
परिवर्तन: ‘इ’ → ‘य’
✅ नया शब्द: अत्यिन्द्र
14. भू + अर्थ = भुवार्थ
-
पहला शब्द: भू (‘ऊ’ से समाप्त)
-
दूसरा शब्द: अर्थ (‘अ’ से शुरू)
-
परिवर्तन: ‘ऊ’ → ‘व’
✅ नया शब्द: भुवार्थ
15. कृपु + अर्थ = कृप्वर्थ
-
पहला शब्द: कृपु (‘उ’ से समाप्त)
-
दूसरा शब्द: अर्थ (‘अ’ से शुरू)
-
परिवर्तन: ‘उ’ → ‘व’
✅ नया शब्द: कृप्वर्थ
16. सति + उपदेश = सत्युपदेश
-
पहला शब्द: सति (‘इ’ से समाप्त)
-
दूसरा शब्द: उपदेश (‘उ’ से शुरू)
-
परिवर्तन: ‘इ’ → ‘य’
✅ नया शब्द: सत्युपदेश
17. मुनि + अर्थ = मुन्यार्थ
-
पहला शब्द: मुनि (‘इ’ से समाप्त)
-
दूसरा शब्द: अर्थ (‘अ’ से शुरू)
-
परिवर्तन: ‘इ’ → ‘य’
✅ नया शब्द: मुन्यार्थ
18. सु + अर्थ = सुवर्थ
-
पहला शब्द: सु (‘उ’ से समाप्त)
-
दूसरा शब्द: अर्थ (‘अ’ से शुरू)
-
परिवर्तन: ‘उ’ → ‘व’
✅ नया शब्द: सुवर्थ
19. ऋषि + उपदेश = ऋष्युपदेश
-
पहला शब्द: ऋषि (‘इ’ से समाप्त)
-
दूसरा शब्द: उपदेश (‘उ’ से शुरू)
-
परिवर्तन: ‘इ’ → ‘य’
✅ नया शब्द: ऋष्युपदेश
20. भू + उपदेश = भुवोपदेश
-
पहला शब्द: भू (‘ऊ’ से समाप्त)
-
दूसरा शब्द: उपदेश (‘उ’ से शुरू)
-
परिवर्तन: ‘ऊ’ → ‘व’
✅ नया शब्द: भुवोपदेश
यण सन्धि का महत्व (Yan Sandhi ka Mahatva)
-
यह सन्धि भाषा को संक्षिप्त, मधुर और लयात्मक बनाती है।
-
शब्दों में प्रवाह लाती है, जिससे उच्चारण सुगम हो जाता है।
-
यह संस्कृत और हिंदी दोनों भाषाओं में समान रूप से प्रयोग होती है।
🧑🏫 विशेषज्ञ राय
Yan Sandhi न केवल हिंदी व्याकरण का एक सुंदर अध्याय है,
बल्कि यह हमारे शब्दों की आत्मा को भी प्रकट करती है।
जब आप ‘कृतार्थ’ या ‘नीत्यर्थ’ जैसे शब्दों को समझते हैं,
तो आप भाषा की उस गहराई को महसूस करते हैं जो अर्थ और ध्वनि — दोनों को जोड़ती है।”
टिप:
यदि विद्यार्थी रोज़ एक सन्धि प्रकार का अभ्यास करें (जैसे आज यण सन्धि, कल गुण सन्धि),
तो कुछ ही हफ़्तों में व्याकरण मज़ेदार लगने लगता है!
🧩 यण सन्धि बनाम अन्य सन्धियाँ
| सन्धि का प्रकार | परिवर्तन | उदाहरण | टिप्पणी |
|---|---|---|---|
| यण सन्धि | इ→य, उ→व, ऋ→र | नीति + अर्थ = नीत्यार्थ | स्वर सन्धि का रूप |
| गुण सन्धि | अ + इ = ए, अ + उ = ओ | देव + इन्द्र = देवेंद्र | ध्वनि विस्तार |
| वृद्धि सन्धि | अ + ए = ऐ, अ + ओ = औ | प्र + एक = प्रैक | उच्च ध्वनि विस्तार |
निष्कर्ष
Yan Sandhi (यण सन्धि) हिंदी व्याकरण की एक बहुत ही सुंदर और महत्वपूर्ण सन्धि है।
यह शब्दों को जोड़ते समय उनके उच्चारण को सरल, मधुर और प्रवाहपूर्ण बना देती है।
बस एक नियम याद रखें —
“इ उ ऋ बनें य व र”
अगर यह सूत्र याद है, तो आप किसी भी यण सन्धि को आसानी से पहचान सकते हैं।
इससे भाषा में मिठास आती है और वाक्य अधिक स्वाभाविक लगते हैं।
इसलिए, यण सन्धि केवल एक व्याकरणिक नियम नहीं, बल्कि हिंदी की सुंदरता का रहस्य है।
Read Also:
❓ प्रश्न-
Q1. Yan Sandhi किसे कहते हैं?
जब ‘इ, ई, उ, ऊ, ऋ’ के बाद स्वर आने पर वे क्रमशः ‘य, व, र’ बन जाते हैं, तो उसे Yan Sandhi कहते हैं।
Q2. यण सन्धि का नियम क्या है?
इ → य, उ → व, ऋ → र
📘 सूत्र: “इ उ ऋ बनें य व र”
Q3. यण सन्धि कैसे पहचानें?
पहले शब्द का अंत ‘इ, ई, उ, ऊ, ऋ’ से हो और अगला शब्द स्वर से शुरू हो → Yan Sandhi होगी।
Q4. यण सन्धिके उदाहरण बताइए।
नीति + अर्थ = नीत्यर्थ
गुरु + उपदेश = गुरूपदेश
कृत + अर्थ = कृतार्थ
Q5. यण सन्धि का व्याकरणिक महत्व क्या है?
यह शब्दों को मधुर और प्रवाहपूर्ण बनाती है।
Q6. Yan Sandhi किन शब्दों में नहीं होती?
जब दूसरा शब्द व्यंजन से शुरू हो, तब Yan Sandhi नहीं होती।
Q7. यण सन्धि का एक आसान सूत्र क्या है?
“इ उ ऋ बनें य व र” — यही इसका स्वर्ण नियम है।
⚠️ डिस्क्लेमर:
यह लेख केवल शैक्षणिक उद्देश्य से तैयार किया गया है।
इसमें दी गई जानकारी हिंदी व्याकरण की मानक पुस्तकों और विश्वसनीय स्रोतों पर आधारित है।
